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हमारे बारे में

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करेंसी नोट प्रेस (सीएनपी, नासिक) भारत सरकार के लिए उच्च गुणवत्ता के बैंक नोटों की छपाई करता हैं। शुरुआत में सन 1928 में स्थापित उत्पादन सुविधा बाद में चलार्थ पत्र मुद्रणालय सन 2006 में निगमिकरण के दौरान भारत प्रतिभूति मुद्रण एवं मुद्रा निर्माण निगम (एसपीएमसीआईएल) की एक इकाई बन गई । यह इकाई नासिक रोड में स्थित हैं और इसका परिसर लगभग 14 एकड क्षेत्रफल में फैला हुआ हैं एवं आधुनिक आई पी निगरानी प्रणाली से सज्जित हैं । मुद्रणालय के पास उत्तम संरचनायुक्त आवासीय संकुल भी हैं ।

भारत भर में प्रचालित 40% से अधिक करेंसी नोटों की छपाई सीएनपी नासिक और बैंक नोट प्रैस, देवास द्वारा की जाती है । मुद्रणालय में प्रतिभूति सामग्रियों का अपना त्रुटिहीन हिसाब हैं जिसमें परिवहन के दौरान अधिकतम सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरक सुरक्षा विभाग हैं । वर्तमान में कर्मचारियों की संख्या 2000 से अधिक हैं । वित्त वर्ष 2016-17 में इस इकाई का कुल कारोबार रू.1100 करोड़ था । वित्त वर्ष 2016-17 में सीएनपी ने विभिन्न मूल्य वर्ग के 4,872 मिलियन बैंक नोटों का उत्पादन किया था ।

केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल द्वारा कारखाने की सुरक्षा के साथ - साथ ग्राहकों के गंतव्य तक करेंसी नोटों के परेषण के दौरान मार्ग में सुरक्षा मुहैया कराई जाती हैं । रेलवे ट्रेजरी वेगन /गाड़ी द्वारा कोष/खजाने का प्रेषण किया जाता हैं ।

संगठन संरचना

इतिहास

करेंसी नोट प्रेस नासिक रोड की स्थापना सन् 1928 ई. में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समय - समय पर करेंसी / विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की आवश्यकताओं तथा मांगों को पूरा करने के उद्देश्य से की गई थी ।

करेंसी नोट प्रेस, नासिक - एक शुरुवात :-
सन् 1922 ई. में भारत में नोटों को छापने की संभावनाओं को तलाशने के लिए ले. कर्नल. जी.डब्लू. विल्लिस, बॉम्बे मिंट के मास्टर और एफ.डी. असूली, नियंत्रक - प्रिंटिंग एंड स्टेशनरी, भारत सरकार, दिल्ली को नियुक्त किया गया । सन् 1924 ई. में उनकी रिपोर्ट के आधार पर, भारत सरकार ने प्रयोगात्मक तौर पर मुद्रणालय की स्थापना की । साथ ही भारत में प्रतिभूति मुद्रण की संभावनाओं की भी जांच की । सन् 1925-26 के दौरान सरकार ने बैंक ऑफ इंग्लैंड के साथ 1 जनवरी 1928 से करेंसी नोटों की प्रिंटिंग करने का ठेका समाप्त करने का निश्चय कर लिया था । वस्तुत : यह ठेका जून 1929 में समाप्त होने वाला था ।

नासिक रोड को दो वजह से प्रतिभूति मुद्रणालय की स्थापना के लिए चुना गया था :

  • क) यहाँ आद्रता और तापमान में अचानक और बड़ी मात्रा में बदलाव नहीं होता हैं ।
  • ख) नासिक मुख्य रेलवे लाइन में स्थित होने के कारण भारत के सभी हिस्सों से जुड़ा हुआ हैं ।

नासिक रोड रेलवे स्टेशन के नजदीक एक स्थान का चयन किया गया था । अगस्त 1926 ई. में इमारत और स्टाफ क्वार्टर बनाने की शुरुआत हुई थी और 1928 ई. के प्रारम्भ में कार्य पूरा हुआ ।

करेंसी नोट प्रेस, एस.पी.आई. के ठीक पीछे था एवं यह रेलवे लाइन द्वारा अलग किया हुआ था ।
इमारत सहित कर्मचारियों के लिए बनाए गए क्वार्टर की लागत रू. 18 लाख से कुछ ज्यादा थी, जबकि मुद्रण मशीनों और उपकरणों की कीमत रू.8 लाख से थोड़ी अधिक थी और रू. 2 लाख के करीब की शेष राशि में विद्युत उपकरण, पानी आपूर्ति, नालियाँ, रेलवे साइडिंग और जमीन की कीमत को मिला कर कुल लागत रू.27½ लाख से कुछ कम थी ।

प्रतिभूति मुद्रणालय, नासिक ने सर्वप्रथम रू.5 के उसी नए पैटर्न के नोट को छापना शुरू किया जिसे बैंक ऑफ इंग्लैंड सन् 1925 से छाप रहा था । इन्हें कानपुर सर्कल से 9 अक्टूबर, 1928 को जारी किया गया था ।

इसके पश्चात रू.100/- के उन्हीं पैटर्न के नोटों को छापा गया जैसे नोट सन् 1926 से इंग्लैंड में छप रहे थें ।  

पूरी तरह से नए पैटर्न के रू.10/- के नोट जो कि पहले इंग्लैंड में छापे जा रहे नोटों से अलग थें, ऐसे नोटों की छपाई नासिक में छापे गए और जुलाई 1930 में इन्हें जारी किया गया था । उसी समय संपूर्ण रुप से नए पैटर्न के रू.50 के नोट भी पहली बार जारी किए गए ।  

बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा ठेका पूरी तरह से समाप्त होने तक उच्च मूल्य के रू.500/-, 1000/-, और 10,000/- के नोट दिसम्बर 1930 तक पहले की तरह छापे जा रहे थें । नासिक मुद्रणालय ने वर्ष 1931-32 से रू.1000/- और 10000/- के नोटों को छापने का काम शुरू किया था । कम मूल्य के नोटों के समान इन नोटों की डिज़ाइन नई थी और ये दोनों तरफ छपे हुए थें । इन नोटों के जारी होने से पहले इन मूल्य वर्ग के नोटों का नकदीकरण सिर्फ उनके जारी करने वाले कार्यालयों जैसे कलकत्ता, मुंबई, मद्रास, कानपुर, लाहौर और रंगून से ही होता था । नए नोटों का वैश्वीकरण किया गया और उन पर छपे हुए सर्कल के नाम के अलावा उन्हें देश में कहीं भी नकदीकरण किया जा सकता था । इन नए नोटों के साथ साथ पुराने नोट भी परिचालन में थें, किन्तु एक बार करेंसी कार्यालय में पहुँचने के बाद इन्हें पुन : जारी नहीं किया जाता था ।

करेंसी नोट प्रेस, नासिक में किंग जॉर्ज पंचम के रु.10,000/- के नमूने के नोटों की छपाई :-
मुद्रण एवं वितरण की लागत को कम करने की दृष्टि से सन् 1933 में, 8 मार्च और 1 जुलाई को क्रमश: 5 और 10 रुपये के नए डिज़ाइन के नोट जारी किए गए थें । यह नोट पहले जारी किए गए नोटों के आकार की तुलना में छोटे थें और पतले कागज पर छापे गए थें । इसलिए एक वर्ष के अंदर पुराने मोटे पेपर को पुनः स्थापित किया गया, किन्तु आकार पहले जैसा ही था ।

करेंसी नोट प्रेस, नासिक सन् 1962 में आई.एस.पी. से अलग नए स्थान पर स्थानांतरित हुआ था और 1 रुपये के नोटों के मुद्रण के साथ शुरुआत की गई थी । तत्पश्चात, सन् 1980 से सभी मूल्य वर्ग के नोटों की छपाई का कार्य सीएनपी में किया जाने लगा ।

वर्तमान का करेंसी नोट प्रेस :-

  • परिसर का कुल क्षेत्रफल 48 एकड हैं ।
  • आईएसओ 9001 -2008 क्यूएमएस और आईएसओ 14000 ईएमएस प्रमाणित इकाई ।
  • भारत सरकार एवं 14 विदेशी राष्ट्रों के लिए करीबन 300 प्रकार के बैंक नोट की डिज़ाइन, छपाई और आपूर्ति की गई ।
  • सीएनपी में संदेहास्पद जाली नोटों की जांच करने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित जाल नोट अन्वेषण प्रयोगशाला और विशेषज्ञ पदाधिकारियों का एक समूह है । सीएनपी को विभिन्न जांच एजेंसियों जैसे एन.आई.ए., राज्य सी.आई.डी., सी.बी.आई. तथा बैंक, न्यायालय आदि से संदेहास्पद नोट प्राप्त होते हैं।
  • सीएनपी मे वॉटर मार्क बैंक नोट पेपर की जांच करने के लिए आंतरिक आधुनिक कागज परीक्षण प्रयोगशाला आरंभ की गई है ।

उपलब्धियाँ :-
1923 - परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत की गई ।
1924 - रिपोर्ट अनुमोदित हुई और नींव का पत्थर रखा गया ।
1928 - करेंसी नोटों की छपाई शुरू हुई ।
1931- रु.1000/- और 10,000/- के नोटों की छपाई आरंभ ।
1933 - रु.5/- और 10/- के नए डिज़ाइन के नोटों को जारी किया गया ।
1938 – भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा राज्यपाल जे.बी. टेलर के हस्ताक्षर युक्त पहला नोट जारी किया गया ।
1948 - पाकिस्तान में वैध मुद्रा हेतु भारतीय नोट पर “पाकिस्तान सरकार” और “हुकूमत ए पाकिस्तान” मुद्रित किया गया ।
1949 – स्वतंत्र भारत का नए डिज़ाइन वाला 1 रुपये का नोट सन् 1949 में जारी किया गया ।
1949 - अशोक स्तम्भ युक्त पहला करेंसी नोट जारी किया गया ।
1962 - नए स्थान पर 1 रुपये के नोट की छपाई शुरू हुई ।
1980 - सभी करेंसी नोटों की छपाई नए स्थान पर स्थानांतरित की गई ।
1981 - सागर सम्राट की डिज़ाइन वाला 1 रुपये का नोट जारी किया गया ।
1996 – महात्मा गाँधी (एम.जी.) सीरिज के नोट प्रस्तुत किए गए ।
2000 - ऑप्टिकल वेरिएबल इंक (ओ.वी.आई.) प्रतिभूति विशेषता का उपयोग रु.500 और 1000 मूल्य वर्ग के बैंक नोटों में किया गया ।
2005 - बैंक नोटों के पिछले भाग में मुद्रित वर्ष का समावेश किया गया ।
2014 - सागर सम्राट डिज़ाइन की नई रंग योजना के साथ 1 रुपये के नोट जारी किए गए ।
2016 - भारत सरकार द्वारा रु.500/- और रु.1000/- मूल्य वर्ग के नोटों का विमुद्रीकरण किया गया और रिमोनिटाइजेशन के अंतर्गत 2016 सिरीज़ के बैंक नोट प्रस्तुत किए गए ।